समझो ना
समझो ना! मेरी ख़ामोशी को तुम समझो ना! मैं कुछ कह नही सकती थोड़ी बेबश हूँ। मेरे अंदर की तड़पन को देखो ना! खगालो खुदको भी एक बार। एक बार मुड़ कर देखो ना! मेरी ख़ामोशी को तुम समझो ना! बेताहाशा मुझे तुमसे मोहब्बत है। चाहो तो तुम परखों ना। सुनो ना....! कई दफा मैंने तुझको सम्भाल है। अब तुम भी आकर मुझको संभालो ना। की कई अर्षो से ख़ामोश पड़ी है मेरी आँखे। अब तुम्ही इन्हें बताओ ना! की ना तड़पा करे यू किसी अज़नबी के लिए। हम थक चुके है खुदमे खुद से ही। अब तुम समझ जाओ "या"आकर समझा जाओ ना। - राधा माही सिंह