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एक दौर

एक दौर यह भी रहा ज़िंदगी में। जहां टूट जाने पर लोगो ने लूट लिया। एक दौर यह भी रहा ज़िंदगी में। जहां अपनों की हर बात कड़वी और दूसरो की चापलूसी मीठी लगी। एक दौर यह भी रहा ज़िंदगी में। जहां रिश्ते हमने पैसों से कई बना लिया,मगर मां - बाप  बना नही सका। एक दौर यह भी रहा जिंदगी में। जहां डिग्रिया तो बहुत कमाई। मगर किस्मत अजमा लिया,और डिग्रिया पड़ी रह गई। एक दौर यह भी रहा ज़िंदगी में। जहां झूठ जीत गया और सच मोन रहा, और सबने "मुझे" गुनहागर भी मान लिया। एक दौर यह भी रहा ज़िंदगी में। उतार चढ़ाओ बहुत देखे और सुना भी हमने। मगर खुदको हर जगह से नाकामयाब होते भी देख लिया। एक दौर यह भी रहा ज़िंदगी में। सब कुछ चुप-चाप सहना सीखा लिया।                 - राधा माही सिंह