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Showing posts from July, 2019

चलो आज जिन्दगी जीने का तरीका बदलते है

चलो आज जिन्दगी जीने का तरीका बदलते है। हर छोटे लोगो को प्यार और बड़ो की आशीर्वाद को लेते है। और इस तरह खुद का खुद से ही समान करते है। चलो आज जिन्दगी जीने का तरीका बदलते है। बड़ो से जीवन जीने का और छोटो से स्टाइल सीखते है। पड़ोसीयो से मील कर उनकी हाल जानते है। दोस्तो के साथ रह कर उनके गम मैं हम बनते है। चलो कुछ इस तरह आपने  नई जीवन की शुरुआत करते है। कुछ अच्छा होगा कुछ बुरा होगा मगर हर दुख:-सुख: में एक दूसरे का साथ बनते है। खुदा के साथ-साथ माँ और पिता का आशीर्वाद लाते है । बड़ो को समान और छोटो को प्यार देते है। चलो आज जिंदगी जीने  का तरीका बदलते है।                              -राधा माही सिंह

वो कलम था कालाम का।

वो कलम था कलाम का जो देता था दुआएं सलाम का। वो कलम था कलाम का जो टूट जाने पर भी साथ दिया करता था। वो वचन था कलाम का हर मुश्किल से मुश्किल काम को आसार किया करता था वो सोच और विचार था कलाम का । खो गया था एक तारा खो गया था एक कलम जिस पर नाम था हमारे अब्दुल कलाम का। वो सिख और उच्च-विचार था हमारे कलाम का।                         -राधा माही सिंह

जिंदगी है एक फल-सफा।

जिंदगी एक फल-सफा है जी से जीते रहना चाहिए। हर किसी को हर किसी से ना किसी से मिलते रहना चाहिए। एक नया सफर हो और उस सफर में अपनी चाहत को पाने  का आगाज होनी चाहिए। हर किसी को हर किसी से मिलते रहना चाहिए। पुरानी चेहरा और नया सोच कायम रखना चाहिए। रुकावटें बहुत सी होंगी आपके जीवन में आपके और आपके मंँजिलों के बीच मगर खाबो और मं ँ जिलों से अटूट रिश्ता रखना चाहिए। टूट कर भी जो ना टूटे ऐसी हिम्मत और जज्बा होनी चाहिए। राते तो बहुत होंगी और ना जाने कितने सुबह होंगे जीवन में मगर हर पल को ऐसे जियो कि आखिरी होनी चाहिए। जिंदगी एक फलसफा है जिसे जीते रहना चाहिए। कभी-कभार दिए को भी चलाते रहना चाहिए। उस दिए की महक से घर-आँगन के साथ-साथ अपने जीवन को भी मैं महकाना चाहिए। उदासियों के साथ-साथ  मुस्कुराहटें भी लबों पर  सजोते रहना चाहिए। जिंदगी एक फलसफा है जिससे जीते रहना चाहिए।                                   - राधा माही सिंह

कारगील दिवस

कारगिल दिवस। कभी फुर्सत में रही तो बताऊंँगी उन वीरों की बलिदानी याद करा आऊंगी उनकी लाशों को भी गिनवाऊंगी। ना जाने कितने घर वीरान पड़े हैं। सुन-सान पड़े हैं। उस घर के भी दरवाजा ठक-ठक आऊंँगी बस फुर्सत मिले तो उस माँताओं को चरण छू आऊं ँ गी जिन्होंने शेर पुत्र पैदा किया था जो कारगिल के युद्ध में हिस्सा लिया था। खुन बही थी गोलीया चली थी। और ना जाने कितनो की अर्थीया उठी थी। दामन छिनी थी । बेटा छिना था। ना जाने उन मुश्किल खडीयो ने क्या-क्या छिना था। उस माँ का आचल रोया था जब कारगील का युद्ध छिडा़ था।                             -राधा माही सिंह

जिंदगी उसुल बदल रही हैं।

जिंदगी अपनी उसुल बदल रही है । पानी की कीमत खून मांँग रही है। जिंदगी अपनी उसुल बदल रही है । जीने को ही जान मांँग रही है। मछली पानी मे रह कर भी तड़प रही है। मौत भी मौत की दुआ मांँग रही है। जिंदगी अपनी जीने की उसुल बदल रही है।                      - राधा माही सिंह