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Showing posts from February, 2020

पिता और उनकी कंधों की याराना

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जिन कन्धों पर बैठ कर दुनिया देखी है हमने। हाँ अपने पिता की काली रातो को उस वख्त नही देख सका क्योंकि मसहूर था मैं मेरी सवारी में। अब दर्द का अहसास हुआ है तो समझ आया है की क्या फर्क था पिता जी की कन्धों कि यारी में। आज तजुर्बा मिला है, बोझ का जब एक कदम चला तो याद आया ऊन कंधों कि बोझ क्या होगी? दुशरा चलता कि थक सा गया और समझ आया की भार क्या होगी उन कन्धों की सवारी का? और वो अक्सर ही मेरे माथे को चूम लिया करते थे आपने माथे का दर्द हल्का करने के लिए। बोझ तले दुबकते थे वो आँसुओ को हास् कर चूमते थे जब मेरे आँखों से एक कतरा गिर आया जमी पे तो समझ आया कि आग क्या है? तप्ता था  चील-चिलते धूप में उनका बदन नंगा मेरे जिस्मो को वस्त्र दिया। जब कफ़न की बारी आई तो समझ आया कि आख़िर मुझको क्यों मेरे पिता ने मुझको जन्म दिया? इन कन्धों पर बैठ कर पूरा जहाँ देखा है हमने जब खुद पर सहा तो समझ आया कि औलाद क्या है? और कंधों का प्यार क्या है?     - राधा माही सिंह 

फिर से

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तुम से एक बार फिर से प्यार हो रहा है।  हाँ इस बार इज़हार हो रहा है। तेरे ऑनलाइन आने का इन्तेजार हो रहा है। मुझे एक बार फिर से तुम से प्यार हो रहा है। खुद समझ कर तुझको समझने का क्रिया लागतार चल रहा है। दिल तेरी प्यारी सी हरकतों पर फिर से मचल रहा है।  हाँ मुझे एक बार फिर तुम पर विस्वास हो रहा है। मुझे तुम से प्यार हो रहा है। तेरे ख्याल में यह धड़कने बार-बार धड़क रहा है। मुझे शायद एक बार फिर तुम से इश्क का लग्न लग रहा है। हाँ मुझे तुम से हीर-रांझा सा प्यार हो रहा है।      -राधा माही सिंह

माँ

जब थक सी जाती हूँ इन काली रातो से तब तुम मेरी रोशनी बन जाती हो। मेरी हर लम्हो की जिंदगानी बन जाती हो। टूट जाती हूँ जब खुद से मैं तब तुम एक मात्र सहारा बन जाती हो। लोगो से हास् कर मिलना सिखलाती हो। लाख बुरा हो जाये मगर खुद से अच्छा रहने का अहसास कराती हो। विसवास में भी आश छिपा होता है यह बतलाती हो। मुझे सुन कर खुद समझ कर और तब समझती हो। मेरी हर मुस्किलो की रास्ता बन जाती हो। माँ तुम मेरे दोस्तों की कतार में भी आगे नज़र आती हो। भले तुम मुझ से अपने दुःखो को छिपाती हो मगर मेरी खुशियों की वजह बन जाती हो। कहने को तो मामूली सा रिश्ता है हम माँ बेटी का बस "इस चौखट से उस चौखट का" खेल है मगर मईयत तक साथ निभती हो। माँ तुम मेरे हर भगवान से पहले जानी जाती हो। मेरी हर tv-sireal की अभिनेत्रि बन जाती हो।      माँ तुम मेरी inspiration कहलाती हो।            -राधा माही सिंह

खो चुकी हूँ उन्हें।

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कब का खो चुकी हूँ,उन्हें मगर आज भी बस एक डर सा होता है उन्हें खो देने का। गहराई से कोई नही जानता मगर सब कह देते है बहुत अच्छे से जानते है तुम्हे। अब डर है,उनके खो देने का मगर पाई कब थी ये सवाल कचोटता है। दीवारों पर लिखा एक नाम को अब भी बड़ा सिद्धत से निहारती हूँ,तब पता चला लिखा ही क्या है?सिवाए उनके नाम के अक्षरों का। कब का खो चुकी हूँ उन्हें मगर आज भी बस एक डर सा होता है,उन्हें खो देने का।           -राधा माही सिंह