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Showing posts from August, 2022

काश!

कि काश मेरी सासो की लड़ी यहीं टूट जाती। तो अपनो का साथ इसी पहलू में छूट जाता। फरेबो की दुनिया यही रूक जाती। कि काश मेरी सासो की लड़ी यहीं टूट जाती। बिच रास्ते में खड़ी बस यही सोच रही हूं। कि काश कोई सुकून का पता दे जाता। कुछ और ना सही। बस इस जिंदगी को एक पल का सब्र मिल जाता।                 -राधा माही सिंह

मैं इश्क हूं ।

मैं इश्क हूं। मैं दाग हूं। मैं तुमसे लिपटी हुई एक राग हूं। मैं ही समर्पण। मैं ही अर्पण। मैं गगन की अभिलाष हूं। मैं उड़ते हुए परिंदे की प्यास हू। मैं ही अमर। मैं तंग गलियों की गुमनाम कोई जुड़ती हुई रास्ता हूं। मैं पनपती लाज हूं। मैं स्वयं एक चक्र का जंजाल हूं। मैं इश्क हूं। मैं दाव हूं। मैं मध से भरी हुई एक पेच हू। मैं सत्य हूं। मैं झूठ हूं। मैं इश्क में पड़े एक रोग हूं। मैं ही सतरंज हूं। मैं ही मोहला का चाल हू। मैं इश्क हूं। मैं चैन हू। मैं तुम में डूबी एक शाम हूं। मैं ही सुबह । मैं ही पहर की रात हूं। मैं खंकती बालियां। तो कभी कंकड़ की भांति एक टूटा इश्क हूं। मैं शहर । मैं दोपहर। मैं किसी लाल इश्क जुबान हूं। मैं कृष्ण की पहचान हूं। मैं मीरा की जान हूं। मैं इश्क की दिवार हूं। मैं ही विलय। मैं ही सोम। मैं कजरी नैनो की फाग हूं। मैं इश्क हू। मैं दाग हूं। मैं तुमसे लिपटी एक राग हूं।            -राधा माही सिंह

क्यों?

क्यों किसी कहानी में "एक लड़का और एक लड़की होती है?" क्यों किसी कहानी में किरदार "नदी,झरना और पहाड़ों का सुहाना होता है?" क्यों किसी किरदार को "कहानी के अंत में मरना होता है? " क्यों किसी कहानी में "उन दोनो को बिछड़ना होता है?" और क्यों मैं यह सवाल खगाल रही हूं? बे - मतलब ही अपना खोटा सिक्का उछाल रही हूं! क्यों मैं चोखट पर बैठे ये रात गुजार रही हूं? क्यों किसी किरदार के पीछे भाग रही हूं? क्यों किसी अभिनय में "हवाएं ना दिखते हुए भी बखूबी किरदार अदा कर जाते है?" क्यों किसी कहानी में "किसी को किसी के लिए रोना होता है?" और क्यों मैं परेशान हूं,किसी अभिनय या किसी  किरदारो से? क्यों और क्या चाहती हूं इन किरदारो में? जो खुद को आईने में देखने तक से कतराती हो। मगर आज क्यों अकेले बैठ कर किरदारो से रूबरू होने की चाहत रखती है?             -राधा माही सिंह
समझ में नहीं आ रहा की जिंदगी कि शुरुवात करू कैसे? या फिर शुरू से शुरू करू कैसे? किसीने कहा था, कि जिंदगी में कुछ पाने के लिए कुछ खोना जरूरी है। मगर मैंने पाया क्या है,यह भी सवाल है?  सिवाए खोने के अलावे,यह भी निराश है। गर मेरी अल्फाज़ यही ख़त्म हो जाता तो बेहतर है! मगर आसुओं को ख़त्म होने को क्या समझूं, यह भी उलझन है। बीती हुई रातो को क्या हुआ कुछ याद नहीं आ रहा है। मगर कल क्या होगा? यह चिंता आज सोने नही दे रहा है। पहलू जिंदगी की तो दो है। मगर आज तक शायद हमारी मुलाकात किसी एक से ही हुई हैं। खैर मसला यह नही है की शुरुआत कैसे करू या कहा से करू? मसलसल कोई साथ मिल जाता तो राहे आसान हो जाती है। यह बात आज कल मुझे अधूरा सा होने का हसास दिलाता है।           -राधा माही सिंह

i don't want

Sex.....!!! Dating.....!!!! Being in relationship.....!!! I don't want anything.....!!! I want no one to touch me....!!! I want no one to date me....!!! I don't want silly thing in my life...!!! I don't want to waste my time....!!! I want to fly in the open sky....!!!! I want to feel the high.....!!! I don't want bother between me and my dreams....!!! I don't want to fall in love and no love should follow me too..!!! Ooh.....!!! I couldn't....!!! Exactly i couldn't...!!! Sex....!!! Dating....!!! Or being more than friends...!!! Oops.....!!! These are silly things....!!!! Which I don't want to do...!!! I just want to care my popple...!!! I want to be with them...!!! I want to date myself...!!! I want to be my favourite..!!! Or nothing else I want.....!!! God bless keeps away from the things which I don't want...!!!                 - Radha Maahi Singh 

अजीब है।

अजीब है ना। हम पूरी ज़िन्दगी जिस चीज़ से भाग रहे होते है, आख़िर में हम गुलाम होते है। अजीब यह भी है ना। कि हम वो काम दुबारा नहीं करेंगे "का कसम" ले कर उसी काम को हर बार करते है। शायद यह भी अजीब होगा ना। जब हमे किसी की साथ चाहिए हो  ,तब उसकी मौजूदगी हो कर भी नही होता है। हालाकि अजीब होना भी लाज़मी है ना। कि हम अपने स्वार्थ में यह भूल जाते है। कि जो हमारे समक्ष खड़ा है वो हमसे बलवान है भी या नही है? बेशक जिन्दगी में गलतियां हजार हो। मगर उन गलतियों से तजुर्बा नया हर बार हो। यह भी अजीब बात है ना!