मैं इश्क हूं ।

मैं इश्क हूं।
मैं दाग हूं।
मैं तुमसे लिपटी हुई एक राग हूं।
मैं ही समर्पण।
मैं ही अर्पण।
मैं गगन की अभिलाष हूं।
मैं उड़ते हुए परिंदे की प्यास हू।
मैं ही अमर।
मैं तंग गलियों की गुमनाम कोई जुड़ती हुई रास्ता हूं।
मैं पनपती लाज हूं।
मैं स्वयं एक चक्र का जंजाल हूं।
मैं इश्क हूं।
मैं दाव हूं।
मैं मध से भरी हुई एक पेच हू।
मैं सत्य हूं।
मैं झूठ हूं।
मैं इश्क में पड़े एक रोग हूं।
मैं ही सतरंज हूं।
मैं ही मोहला का चाल हू।
मैं इश्क हूं।
मैं चैन हू।
मैं तुम में डूबी एक शाम हूं।
मैं ही सुबह ।
मैं ही पहर की रात हूं।
मैं खंकती बालियां।
तो कभी कंकड़ की भांति एक टूटा इश्क हूं।
मैं शहर ।
मैं दोपहर।
मैं किसी लाल इश्क जुबान हूं।
मैं कृष्ण की पहचान हूं।
मैं मीरा की जान हूं।
मैं इश्क की दिवार हूं।
मैं ही विलय।
मैं ही सोम।
मैं कजरी नैनो की फाग हूं।
मैं इश्क हू।
मैं दाग हूं।
मैं तुमसे लिपटी एक राग हूं।
           -राधा माही सिंह

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