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Showing posts from August, 2019

एक बेटी की बेबशी

एक बेटी की बेबशी ना तो वो अपनी है और ना ही वो पराई । ना जाने  खुदा ने हमारा और तुम्हारा किस रिश्ते का दिया है दुहाई? बाखुदा सब कुछ है मेरे पास  जब तलक तू है मेरे पास। तेरी सासो मे मेरी जान है भुलाई। तेरा जिक्र करु भी तो कैसे करूँ? तू मेरी या मैं तेरी हूँ परछाई?  ना जाने ने हमारा और तुम्हारा  खुदा ने किस रिश्ते का दिया है दुहाई? यूंं तो दुआ मैं भी कर सकती हूँ।  मगर ना जाने माँ तूने अपनी दुवा में कौन सी अमृत है मिलाई? अब तो दिल करता है लेलू तेरी सारी बलाई  बस तेरे आँचल के छाओ मे मैं रह जाऊ और कर लूं इस जहाँ से बेवफाई। ना जाने खुदा ने कौन सी रिश्ते की दी है दुहाई? सही गलत का पहचान तुमने ही हो कराई।  मुझ को जीना तुम ही हो सिख लाई।   गम को भी गले लगाऊ और हास् कर सारे इम्तीहान को पास कर जाउ। दुश्मनों से भी मिलना तुमने सिखलाया है।  उन्हें भी अपने रंगों मे ढाल लू वो रंग भी मैंने तुझ से ही पाया है।  किताबो को समझना तूने सिखलाया है।  मौत से भी दोस्ती गहरी हो ये भी तूने बतलाया है। तेरा रूप अनेक है। माँ।  मगर तूने सारे रिश्तो को बखुबी निभाया है। माँ देखो ना खुदा का  एक चिट्ठी आया है। मुझ

सुनी हूँ।

सुनी हूँ। सुनी हूँ मुहब्बत भी कमाल करता है ये सवाल बे-शुमार करता है। रह ना जाए कोई कसर बाकी इसलिए सनम से जुदाई के बाद भी मिलन की चाह रखता है। ये इश्क है। यहां दीवानो का इम्तिहान लिया जाता है। आंक की तो कोई प्राप्ती नही मगर उन्हें उनकी मुहब्बत से मिला दिया जाता है। ये इश्क मे भी ना-ना जाने क्यों इतने इम्तिहान दिया जाता है। कुदरत की करिश्मा को देखो क्या कहर बरसात है। एक अजनबी को पहले अपना बनाता है और जुदाई लिख कर बे-शुमार तड़पता है। आँखों मे रेन दे कर रातो का चैन ले जाता है। सुनी हूँ मुहब्बत भी ना जाने कौंन सा राग सिखा जाता है। अकेले मे ना गुन-गुनाय जाता है। खुदा की इबादत से ज्यादा सनम की तस्बीरों में ना जाने कैसे वक़्त निकल सा जाता है। दुआ मे भी अक्सर नाम सनम का आता है। खुदा का मशीहा भी इन्हें सलाम करता है। क्या कहूं मुहब्बत है ना जो बे-शुमार सवाल किया करता है।                          -राधा माही सिंह