एक बेटी की बेबशी
एक बेटी की बेबशी ना तो वो अपनी है और ना ही वो पराई । ना जाने खुदा ने हमारा और तुम्हारा किस रिश्ते का दिया है दुहाई? बाखुदा सब कुछ है मेरे पास जब तलक तू है मेरे पास। तेरी सासो मे मेरी जान है भुलाई। तेरा जिक्र करु भी तो कैसे करूँ? तू मेरी या मैं तेरी हूँ परछाई? ना जाने ने हमारा और तुम्हारा खुदा ने किस रिश्ते का दिया है दुहाई? यूंं तो दुआ मैं भी कर सकती हूँ। मगर ना जाने माँ तूने अपनी दुवा में कौन सी अमृत है मिलाई? अब तो दिल करता है लेलू तेरी सारी बलाई बस तेरे आँचल के छाओ मे मैं रह जाऊ और कर लूं इस जहाँ से बेवफाई। ना जाने खुदा ने कौन सी रिश्ते की दी है दुहाई? सही गलत का पहचान तुमने ही हो कराई। मुझ को जीना तुम ही हो सिख लाई। गम को भी गले लगाऊ और हास् कर सारे इम्तीहान को पास कर जाउ। दुश्मनों से भी मिलना तुमने सिखलाया है। उन्हें भी अपने रंगों मे ढाल लू वो रंग भी मैंने तुझ से ही पाया है। किताबो को समझना तूने सिखलाया है। मौत से भी दोस्ती गहरी हो ये भी तूने बतलाया है। तेरा रूप अनेक है। माँ। मगर तूने सारे रिश्तो को बखुबी निभाया है। माँ देखो ना खुदा का एक चिट्ठी आया है। मुझ