सुनी हूँ।

सुनी हूँ।
सुनी हूँ मुहब्बत भी कमाल करता है
ये सवाल बे-शुमार करता है।
रह ना जाए कोई कसर बाकी इसलिए सनम से जुदाई के बाद भी मिलन की चाह रखता है।
ये इश्क है।
यहां दीवानो का इम्तिहान लिया जाता है।
आंक की तो कोई प्राप्ती नही मगर उन्हें उनकी मुहब्बत से मिला दिया जाता है।
ये इश्क मे भी ना-ना जाने क्यों इतने इम्तिहान दिया जाता है।
कुदरत की करिश्मा को देखो क्या कहर बरसात है।
एक अजनबी को पहले अपना बनाता है और जुदाई लिख कर बे-शुमार तड़पता है।
आँखों मे रेन दे कर रातो का चैन ले जाता है।
सुनी हूँ मुहब्बत भी ना जाने कौंन सा राग सिखा जाता है।
अकेले मे ना गुन-गुनाय जाता है।
खुदा की इबादत से ज्यादा सनम की तस्बीरों में ना जाने कैसे वक़्त निकल सा जाता है।
दुआ मे भी अक्सर नाम सनम का आता है।
खुदा का मशीहा भी इन्हें सलाम करता है।
क्या कहूं मुहब्बत है ना जो बे-शुमार सवाल किया करता है।
                         -राधा माही सिंह

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