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Showing posts from September, 2022

क्यों

क्यों सवाल उठाते है लोग? जाने क्यों खुदको चरित्रवान बताते है लोग? क्यों एक लड़का एक लड़की दोस्त नही बन सकती? क्यों किसी और के ज़िन्दगी में तक झाक करना जानते है लोग? क्यों सवाल उठाते है लोग? जाने क्या - क्या छुपाते है लोग? श्री कृष्ण को भी नही बक्शा गया। मां सीता को भी अग्नि परीक्षा देना पड़ा। हर बार स्त्री को ही क्यों घीना का पत्र बनते है लोग? एक सवाल है मेरा। क्यों हर बार लड़कियों को ही "चरित्र" से लरस्ते है लोग? क्यों किसी रिश्ते का होना आवश्यक है किसी धागे में बढ़ना जरूरी है। क्यों ये छोटी बात को नही समझ पाते है लोग ? क्यों लडको को "चरित्रहीनता" का सुध बुध नही देते है लोग? क्यों सवालों पर भी लड़का लड़की होने का भेद रखते है लोग?                   -राधा माही सिंह

हर रोज

हर रोज रातों की मेरी "बर्बादियो" का एक "मंजर"लगता है।  जाने क्यों ये शामें मुझे तुम्हारी यादों की समंदर लगता है। तो कभी मैं डूब कर तुम्हें तराशती हूं, इन समन्दर की गहराइयों में। मगर फिर भी ना जाने क्यों सब कुछ अधूरा ख़ाब सा लगता है? हर रोज सुबह मेरी "तसल्ली" वाली होती है।  जाने फिर क्यों ये राते मेरी "बेमंतजर"  सी सोती है। मेरे पास में कभी कुछ "खोने" को था ही नही। मगर जाने ये "दिल" अब हर रोज "क्या" खोने से डरता है? "इल्म"अब मुझे बस सिर्फ इतना है! कि अब ये ज़िन्दगी घायल परिंदे जितना है।  जाने कब "तसव्वुर" मिलेगी "इल्लाही"इस दिल को?  कि बस अब इंतेजार "घड़ी"भर की  है। हर रोज निकलती है,मेरी खुशियों का जनाजा। "खुदा" खुद ही मेरा "नमाजे जनाजा"  पढ़ने को आता है।              -राधा माही सिंह 

शब्द या रचना

तुम जिसे शब्दों की रचना समझ कर चले जाते वो, दरासल वो शब्दो का सिर्फ माला नही होता। तुम जिसे बेबाक समझते हो। उसकी एक रोज भी तुम बिन गुजारा नहीं होता। आज भी यूंही गुजरा करती हू तेरी गालियों से मगर नजरे तुम्हे तलाशे अब ये गुस्ताख़ दिल से दुबारा नहीं होता। तुम जिसे समझ बैठे हो तमन्नाओं की शहर। तो सुनो उस शहर में सूरज और तारा नही होता। और तुम जिसे शब्द समझ कर तालियां बजाते हो। उन तालियों से कई जायदा मेरे दिल में दफन दर्द है जिसे सुनाया भी नही जाता। सुनी हूं बहुत शौक रखते हो किताबे पढ़ने की मगर तुमसे तो शब्दो की गहराइयों में उतरा भी नही जाता।           - राधा माही सिंह