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Showing posts from July, 2021

the last words

The last words आख़िरी मतलब की आख़िरी। आख़िरी मतलब जहाँ सब कुुुछ आखिरी हो। मेरा तुमसे यू इस्तीफाकन मिलना,बात करना और फिर खुदको special one समझने लग जाना और बार-बार तुम्हे समझाना शायद अब ये समझना और समझाना आख़िरी होगा मतलब आखिरी। कभी-कभी कुछ आख़िर ज़िंदगी को आसान कर जाते है। मगर कुछ भी हो बात आख़िरी ही होगा। आख़िरी मतलब आख़िरी जहाँ मैं खुल कर लिखूं की मैंने मोहब्बत में नाकामयाबी हासिल की,जहाँ मैं मेरे पन्नो के एक-एक लेख पर आँसूवो को उभार सकू।  आख़िरी जिसे तुम कभी पढ़ ना सको। आखिरी जिसे में लिख ना सकू। आख़िरी जिसे कोई सोच ना सके। आखिरी मतलब आख़िरी। हर बार इश्क़ करने वाले मरे है। इस बार इल्म होगा दुनियाँ को की इश्क़ को मारा गया है। आख़िरी जहाँ मेरी धड़कने तुम तक पहुँच कर भी नही पहुँच सकेगी। आख़िरी जहाँ तुम्हारी सासे दूर हो कर भी मेरे सीने से आ लगेगी। आख़िरी मतलब की आख़िरी। जहाँ जीते जी  एक मोहब्बत करने वाले का अर्थी उठेगी। आख़िरी मतलब-मतलबी हो कर आख़िरी को अनज्म दे जाना ही आख़िरी होगा। आख़िरी जब अंधेरी रातो में लाल आकाश होगा। तब जीवन का सभी सार ख़्तम होगा। आख़िरी का मतलब सिर्फ आख़िरी जहाँ ना हम तुम और ना ये रियाय

ठीक हूँ मैं

हाँ ठीक हूँ मैं......!!! सौ बात का एक बात हूँ मैं। हाँ ठीक हूँ मैं......!!! कुछ हुआ है तुम्हे, क्या? नही तो!ठीक हूँ मैं.....!!! चलो कही घूम आते है। "जब-जेब टटोला तो एक चवनि शर्मा रही थी।" बस यह देख झट से कहा। नही-नही तुम सब हो आओ! यही ठीक हूँ मैं....!!! सबने सहारा छोड़ दिया आज भी भरोसे बैठी हूँ मैं। बस मन को मार कर कह देती हूँ। हाँ ठीक हूँ मैं....!!!                   -राधा माही सिंंह 

एक बचपन था

एक बचपन था जो दर्द होने पर भी नही रुला पाया था। अब ये जवानी है कि बेबात ही रुलाये जा रही है। एक बचपन का ज़िद था जो बेहद-हदे पार करना सिखाता था। अब ये जवानी का ज़िद है जो जरूरतें पूरी करना सिखाये जा रहा है। एक बचपन था जब घड़ी बांधने की तो इक्षा बहुत थी,मगर समय को देख पाने की इल्म कहाँ था! अब ये जवानी है जहाँ घड़ी हाथो में ना होने पर भी समय के पीछे भागते रहना सिखाये जा रहा है। एक बचपन था,जब जी करता था तब रोलिया करते थे। अब ये जवानी है,जो रातों का इंतेज़ार करवये जा रहा है। गुड़िया, लुका-छुपी,चोर-पुलिस अब इन खेलों में कहाँ जी लगता है?  अब तो ज़िंदगी असल खेल खेलाए जा रही है। की आज बचपन की बहुत याद आ रही है। ये जवानी मुझे हर रोज कतरा-कतरा बाटे जा रही है। एक बचपन था जहाँ माँ की आँचल बेफ़िक्र रहना सिखाता था। अब कहाँ वो बेफ़िक्री का आँचल मिलता है? एक बचपन था जहाँ हर एक दिन में एक सौ साल जी  लिए थे। अब तो यहाँ हर पल ही हम मरते है। जवानी में आकर बचपन खगाल रहे है। आज बड़ी ही तबियत से एक सिक्का आसमानों में उछाल रहे है।                   -राधा माही सिंह 

आओ चलो लौट चलते है।

चलो अब लौट चलते है, काफी थक गए होगे तुम! चलो अब घर को चलते है। आओ चलो अब लौट चलते है। हुआ सो हुआ माफ़ करो इतनी भी क्या नराज़गी भला अपनों से?  "श्याम" चलो अब घर चले। आओ ना मेरे "गिरधारी" घर चले! ऐसी भी क्या नराज़गी जो अपनो से पल-पल दूर करती हो? ज़िंदगी मिली है चलो भरपूर जीते है। हट करना बंद भी करो अब! आओ चलो अब घर चलते है। प्रेम के धागे से बंधा इस दामन को तुम थामे रखो किसी मोड़ पर यह काम देती ही देती है। कि अपनो से बेरूखी सारे सपने तोड़ देते है। चलो ना अब घर चलते है। हुआ जो हुआ उसे भूल समझ कर माफ़ करते है। "मेरी माँ अक्सर कहा करती है, जो माफ़ करते है वही खुदा के समान होते है।" चलो सारे गिले-सिकवे अब दूर करते है। आओ चलो अब लौट चलते है। तुम थक गए होगे! अब घर को चलते है। चलो अब लौट चलते है। चलो अब लौट चलते है।                                 -राधा माही सिंह