आओ चलो लौट चलते है।

चलो अब लौट चलते है, काफी थक गए होगे तुम!
चलो अब घर को चलते है।
आओ चलो अब लौट चलते है।

हुआ सो हुआ माफ़ करो इतनी भी क्या नराज़गी भला अपनों से?
 "श्याम" चलो अब घर चले।
आओ ना मेरे "गिरधारी" घर चले!

ऐसी भी क्या नराज़गी जो अपनो से पल-पल दूर करती हो?
ज़िंदगी मिली है चलो भरपूर जीते है।
हट करना बंद भी करो अब!
आओ चलो अब घर चलते है।


प्रेम के धागे से बंधा इस दामन को तुम थामे रखो किसी मोड़ पर यह काम देती ही देती है।
कि अपनो से बेरूखी सारे सपने तोड़ देते है।


चलो ना अब घर चलते है।
हुआ जो हुआ उसे भूल समझ कर माफ़ करते है।


"मेरी माँ अक्सर कहा करती है, जो माफ़ करते है वही खुदा के समान होते है।"


चलो सारे गिले-सिकवे अब दूर करते है।
आओ चलो अब लौट चलते है।
तुम थक गए होगे!
अब घर को चलते है।
चलो अब लौट चलते है।
चलो अब लौट चलते है।

                               -राधा माही सिंह




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