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Showing posts from November, 2019

रिश्ता

कितना अद्वितीय था ना हमारा तुम्हारा रिश्ता योग्यता तो हम दोनों की ना थी इसे बन्धे और बांधे रखने की मगर इतर रस्ता ना था क्योंकि मेरीरी प्यार में जो गहराई थी। मुझे अस्मिता थी तुझ पर हम तो तुम्हारे देनदार है। संवाद क्या रह गया है अब  हम तो बस तेरे रहमतो का वांछनीय है। (अद्वितीय:- अनोखा।  योग्यता:- क्षमता। इतर:-दूसरा। अस्मिता:-अहंकार। देनदार:- कर्ज़दार। संवाद:- बात जीत। वांछनीय:- चाहने वाले/ चाहने योग्य।)     -राधा माही सिंह

क्या?

क्या कहर बरसाया है तुमने आज तो मेरी साया भी तरश खाया है।  हम पर अरे ज़ालिम दर्द देना ही है। तो सामने से दो ना क्यों बेजान को तड़पाया है तुमने? आज ही तो जन्म ली हूँ ना तो फिर क्यों इस रेस का हिसा बनाया है तुमने। आँखों मे सपनो को सजो कर हाथों में मेहंदी का नाम का बेड़ी लगाया है तुमने। उस बाबा की कन्धों पर कोई भार नही है मगर समाज के डर से ना जाने कितने सालो का प्यार उन्हों ने अपने सिने में दफनाया है । चलो दौड़ गई हूँ मैं भी इस रेस में जरा हमको बताओ तो सही कौन विजय प्राप्ती कर आया है। संस्कार,हया,शर्म और ना जाने क्या-क्या का पाठ हम लड़कियो को पढ़ाया है। दुपटा सरक ना जाए सिने से इस लिए शेप्टी पिन भी लगवाया है। तब भी सवाल है।  मेरा क्या रैप होना अभी तक  बन्द हो पाया है।