रिश्ता
कितना अद्वितीय था ना हमारा तुम्हारा रिश्ता
योग्यता तो हम दोनों की ना थी इसे बन्धे और बांधे रखने की
मगर इतर रस्ता ना था क्योंकि मेरीरी प्यार में जो गहराई थी।
मुझे अस्मिता थी तुझ पर हम तो तुम्हारे देनदार है।
संवाद क्या रह गया है अब हम तो बस तेरे रहमतो का वांछनीय है।
(अद्वितीय:- अनोखा।
योग्यता:- क्षमता।
इतर:-दूसरा।
अस्मिता:-अहंकार।
देनदार:- कर्ज़दार।
संवाद:- बात जीत।
वांछनीय:- चाहने वाले/ चाहने योग्य।)
-राधा माही सिंह
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