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Showing posts from January, 2021

यादे

यादों के पिटारों से कुछ यादे निकली हूँ। आज तक नई जैसी है। यह देख कर सोच रही हूँ। तो यह यादे कैसी है? यादों के पिटारों से कुछ यादे चुराई हूँ। यह जबकी वह अपना था तो यह चोरी कैसी है? हद की यह बिडम्बनाये थी। जबकी मतलब साफ था सभी बातों का। जहॉ हम थे और हमारी यादों के साये में लिपटी तनहाइयां थी।            -राधा माही सिंह कभी तुम भी साफ कर लिया करो पिता की अलमारियों को देखना कितनी यादे निकलती है तुम्हारी। स्कूल के पहले दिन से लेकर आख़िरी टिका करण तक का यादे जहन में समेटे घूमता है। 18के हो जाने पर सीना तान कर चलता है। तुम्हारी हर खुशी को अपने माथे पर रखता है। पिता है साहब जो फ़क़ीर हो कर भी तुम्हे राजकुमारों,राकुमारी सा रखता है।      -राधा माही सिंह मेरा प्रणाम मेरे पिताजी के साथ-साथ उन तमाम पिता को जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों को निभाया है।     #राधा_माही_सिंह     

रिश्ते

रिश्ते बचपन से हमको यही सिखलाया जाता है। रेशम की तरह होते है ये रिश्ते यह बतलाया जाता है। ज़रा सी तना-तानी में टूट जाते है। हर रोज़ की रूसा-फूली में बिखर जाते है। थोड़ी सी ढिल दो तो दूर हो जाते है। सबकी अपनी-अपनी राय थी। सबकी अपनी-अपनी परिभाषये थी। मगर मेरे मन मे उत्पन्न सवालों की एक शृंखला दौड़ रही थी। सवाल यह था, जब ताना-तानी में टूट जाते है रिश्ते तब दादी और दादू के रिश्ते अमेठ क्यों है? जब हर रोज़ अगर रूसा-फूली में अगर बिखर जाते है रिश्ते तो मेरी माँ और पिताजी का रिश्ता आज तक कायम क्यों है?  जब रेशम के कपास की तरह होते है रिश्ते तो एक प्रेमिका और प्रेमी के रिश्ते में दाग क्यों है?         -राधा माही सिंह

त्यौहार।

हाँ मुझे त्यौहारे बहुत पसंद है। क्योंकि इस दिन मेरे पिताजी मेरे पास होते है। मेरी बहन मेरे साथ होती है। उस दिन मेरा घर-घर होता है। मिलकर मेरे घर का दिवारे साथ हस्ता है। हाँ मुझमे अब भी बचपना है। इसलिए ये आँखे हर बार कैलेंडर पर त्यौहारो को ढूंढता है। आज भी मैं उंगलियों पर गिनती हूँ,की कब आएगा त्यौहार? कब आएगा उपहार? उपहार अपनो के साथ होने का। उपहार अपनो के पास होने का। उपहार एक बार मिलकर खिल-खिलाने का। उपहार (आशीर्वादो) को खुद में समेटने का। हाँ आज भी मुझे याद है वो विद्यालय की छुट्टीयो की अर्ज़ियाँ जहाँ लिखा होता था त्यौहार। मुझे याद है आज भी वो दादी की थपकियां जहाँ सहेजा होता था इन त्यौहारो की अनसुनी कहानियाँ। हॉ मुझे इन्तेजार रहता है त्योहारों की। क्योंकि बचपन्न अब भी मिटा नही है। मैं वही हूँ जिसका किस्सा पूरा हुआ नही है।             -राधा माही सिंह