क्या?

क्या कहर बरसाया है तुमने
आज तो मेरी साया भी तरश खाया है।
 हम पर
अरे ज़ालिम दर्द देना ही है।
तो सामने से दो ना क्यों बेजान को तड़पाया है तुमने?
आज ही तो जन्म ली हूँ ना तो फिर क्यों इस रेस का हिसा बनाया है तुमने।
आँखों मे सपनो को सजो कर हाथों में मेहंदी का नाम का बेड़ी लगाया है तुमने।
उस बाबा की कन्धों पर कोई भार नही है मगर समाज के डर से ना जाने कितने सालो का प्यार उन्हों ने अपने सिने में दफनाया है ।
चलो दौड़ गई हूँ मैं भी इस रेस में जरा हमको बताओ तो सही कौन विजय प्राप्ती कर आया है।
संस्कार,हया,शर्म और ना जाने क्या-क्या का पाठ हम लड़कियो को पढ़ाया है।
दुपटा सरक ना जाए सिने से इस लिए शेप्टी पिन भी लगवाया है।
तब भी सवाल है।
 मेरा क्या रैप होना अभी तक  बन्द हो पाया है।
         

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