एक बचपन था
एक बचपन था जो दर्द होने पर भी नही रुला पाया था।
अब ये जवानी है कि बेबात ही रुलाये जा रही है।
एक बचपन का ज़िद था जो बेहद-हदे पार करना सिखाता था।
अब ये जवानी का ज़िद है जो जरूरतें पूरी करना सिखाये जा रहा है।
एक बचपन था जब घड़ी बांधने की तो इक्षा बहुत थी,मगर समय को देख पाने की इल्म कहाँ था!
अब ये जवानी है जहाँ घड़ी हाथो में ना होने पर भी समय के पीछे भागते रहना सिखाये जा रहा है।
एक बचपन था,जब जी करता था तब रोलिया करते थे।
अब ये जवानी है,जो रातों का इंतेज़ार करवये जा रहा है।
गुड़िया, लुका-छुपी,चोर-पुलिस अब इन खेलों में कहाँ जी लगता है?
अब तो ज़िंदगी असल खेल खेलाए जा रही है।
की आज बचपन की बहुत याद आ रही है।
ये जवानी मुझे हर रोज कतरा-कतरा बाटे जा रही है।
एक बचपन था जहाँ माँ की आँचल बेफ़िक्र रहना सिखाता था।
अब कहाँ वो बेफ़िक्री का आँचल मिलता है?
एक बचपन था जहाँ हर एक दिन में एक सौ साल जी लिए थे।
अब तो यहाँ हर पल ही हम मरते है।
जवानी में आकर बचपन खगाल रहे है।
आज बड़ी ही तबियत से एक सिक्का आसमानों में उछाल रहे है।
-राधा माही सिंह
Childhood ki yaden nyc writter
ReplyDeleteWah radhaa mam aapne too bachpn yaad dilaa diii
ReplyDeleteGood one sis😄
ReplyDeleteबचपन याद आ गया ...👍😀
ReplyDeleteAtisundar 👌👌
ReplyDeleteअब वो बेफ़िक्री का आँचल मिलता कहाँ।
ReplyDeleteBahot Sundar
Best one❣️
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