शब्द या रचना

तुम जिसे शब्दों की रचना समझ कर चले जाते वो, दरासल वो शब्दो का सिर्फ माला नही होता।
तुम जिसे बेबाक समझते हो।
उसकी एक रोज भी तुम बिन गुजारा नहीं होता।
आज भी यूंही गुजरा करती हू तेरी गालियों से मगर नजरे तुम्हे तलाशे अब ये गुस्ताख़ दिल से दुबारा नहीं होता।
तुम जिसे समझ बैठे हो तमन्नाओं की शहर।
तो सुनो उस शहर में सूरज और तारा नही होता।
और तुम जिसे शब्द समझ कर तालियां बजाते हो।
उन तालियों से कई जायदा मेरे दिल में दफन दर्द है जिसे सुनाया भी नही जाता।
सुनी हूं बहुत शौक रखते हो किताबे पढ़ने की मगर तुमसे तो शब्दो की गहराइयों में उतरा भी नही जाता।
          - राधा माही सिंह

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