एक बेटी की बेबशी

एक बेटी की बेबशी
ना तो वो अपनी है और ना ही वो पराई ।

ना जाने  खुदा ने हमारा और तुम्हारा किस रिश्ते का दिया है दुहाई?

बाखुदा सब कुछ है मेरे पास जब तलक तू है मेरे पास।

तेरी सासो मे मेरी जान है भुलाई।

तेरा जिक्र करु भी तो कैसे करूँ?
तू मेरी या मैं तेरी हूँ परछाई?

 ना जाने ने हमारा और तुम्हारा  खुदा ने किस रिश्ते का दिया है दुहाई?
यूंं तो दुआ मैं भी कर सकती हूँ।

 मगर ना जाने माँ तूने अपनी दुवा में कौन सी अमृत है मिलाई?
अब तो दिल करता है लेलू तेरी सारी बलाई

 बस तेरे आँचल के छाओ मे मैं रह जाऊ और कर लूं इस जहाँ से बेवफाई।
ना जाने खुदा ने कौन सी रिश्ते की दी है दुहाई?


सही गलत का पहचान तुमने ही हो कराई।

 मुझ को जीना तुम ही हो सिख लाई।  

गम को भी गले लगाऊ और हास् कर सारे इम्तीहान को पास कर जाउ।
दुश्मनों से भी मिलना तुमने सिखलाया है। 

उन्हें भी अपने रंगों मे ढाल लू वो रंग भी मैंने तुझ से ही पाया है।

 किताबो को समझना तूने सिखलाया है।

 मौत से भी दोस्ती गहरी हो ये भी तूने बतलाया है।

तेरा रूप अनेक है।

माँ।

 मगर तूने सारे रिश्तो को बखुबी निभाया है।


माँ देखो ना खुदा का  एक चिट्ठी आया है।

मुझको भी ये रोल अदा करना होगा ये बतलाया है।


गम मे-मै हसलूंगी तन्हा खुद को बकछुगी।


मगर एक रोज़ जब तेरी याद आई तो बताओ ना माँ तब वो आँचल कहाँ  को धुढूंगी?
बिठा प्यार से तेरे गोंद मे लौट कहाँ पर अउनगी?
रोउंगी-बिखलउगी मगर चैन कहाँ पर पाऊंगी?
घर-परिवार बड़े-छोटे और वो आँगन को संभाल ने मे लग्जाउंगी !

मगर एक बेटी की बेबशी माँ तुम से बेहतर कहाँ समझ पाउंगी?
दुआ तो मैं कर लूंगी मगर वो अमृत कैसे पिलाऊंगी?
अपने  हृदय के खून से भी उस आंगन को  महका ऊँगी।

 जहा तेरी याद आई तो तेरी ही गीतों को गुन-गुनगुनाउँगी। 

तेरे दिए हुए ममता को अब अपने कोख में बरशाऊनगी।


तेरी ही लोरी गा-गा कर उसको भी सुलउगी ममता का बिस्तर उसके लिए भी लगाउंगी।


इस फर्ज को बखूबी मैं निभाऊंगी।
तेरा दिया हुआ सारा सिख उसको भी सीखलउगी।
पिरपराई और आँखों का नीर ना जाने इस जमाने से भी रूबरू करवाउंगी 

 माँ अगर लड़की हुई तो अपने कोख को दग्वाउंगी ।

उसे उंगली पकड़ कर चलना अपने ही हाथों से सिखलाउंगी।

और जब बारी होगी आँखे खोलने का तो तस्बीर अपने पिता का दिखलाऊँगी।

उनके आखो का नीर भी अपने आखो से छालकाउंगी हो जाए खुदा नराज़ उसको अपनी बेटिया रानी को दिखलाऊँगी ।और अपने सर को ऊपर उठा कर माँ तुम्हारी तरह ईतराउंगी।


ना कोई रिश्ता होगा और ना कोई अपना होगा मगर उसे  गैरो से भी हस्स कर मिलना सिखलाऊंगी।


मुझ मैं तुम्हारी परछाई नज़र आऐ ठीक उसकी नानी माँ बन जाउंगी।


माँ तुम जैसी तो नही बन सकती मगर तुम मे-मैं बन कर रह जाउंगी।


अब जो तुम्हारी याद आई तो बेटिया को (सीने से लगाउंगी।)

समझ तो नही सकती दर्द उसका मगर उसकी बेबशी समझ जाऊँगी।


                                   - राधा माही सिंह

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