अजीब है।

अजीब है ना।
हम पूरी ज़िन्दगी जिस चीज़ से भाग रहे होते है, आख़िर में हम गुलाम होते है।
अजीब यह भी है ना।
कि हम वो काम दुबारा नहीं करेंगे "का कसम" ले कर उसी काम को हर बार करते है।
शायद यह भी अजीब होगा ना।
जब हमे किसी की साथ चाहिए हो ,तब उसकी मौजूदगी हो कर भी नही होता है।
हालाकि अजीब होना भी लाज़मी है ना।
कि हम अपने स्वार्थ में यह भूल जाते है।
कि जो हमारे समक्ष खड़ा है वो हमसे बलवान है भी या नही है?
बेशक जिन्दगी में गलतियां हजार हो।
मगर उन गलतियों से तजुर्बा नया हर बार हो।
यह भी अजीब बात है ना!

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