कारगील दिवस
कारगिल दिवस।
कभी फुर्सत में रही तो बताऊंँगी उन वीरों की बलिदानी याद करा आऊंगी उनकी लाशों को भी गिनवाऊंगी। ना जाने कितने घर वीरान पड़े हैं। सुन-सान पड़े हैं।
उस घर के भी दरवाजा ठक-ठक आऊंँगी बस फुर्सत मिले तो उस माँताओं को चरण छू आऊंँगी जिन्होंने शेर पुत्र पैदा किया था जो कारगिल के युद्ध में हिस्सा लिया था। खुन बही थी गोलीया चली थी। और ना जाने कितनो की अर्थीया उठी थी।
दामन छिनी थी ।
बेटा छिना था।
ना जाने उन मुश्किल खडीयो ने क्या-क्या छिना था।
उस माँ का आचल रोया था जब कारगील का युद्ध छिडा़ था।
-राधा माही सिंह
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