उलझन
कैसे बताऊं अब उनको? कि, किस उलझनों में हम उलझे है। अब कहना छोड़ दिया है, हमने कौन कैसा ? और कैसा भीतर रंग का है। कैसे बताऊं अब उनको? कि, हमने अपनो को बदलते देखा है। अब कहना छोड़ दिया है,हमने कौन किसका कितना है? भला कैसे कहूं, यहां हर कोई बहता सागर सा है। कैसे बताऊं अब उनको? कि,किस उलझनों में हम उलझे है। - राधा माही सिंह