एक रोज़
एक शाम कही तेरे दरवाज़े पर ठहर कर, अपना कारवा बंद कर देंगे। देखना एक रोज़ तुम्हे पा कर हर मुहिम तुमसे जोड़ देंगे। तुम्हे मालूम ही नहीं तुम मेरे लिए कितने जरूरी हो। तुम दिनकर किसी राजा जैसे मेरे हिरामणि हो। एक रोज़ जब ग़र गुजरूंगा तुम्हारे गलियों से, देखन फिर कभी उस गली का रुख ना करूंगा। तुम लाख जतन कर लेना मगर, मैं नहीं लौटूंगा। देखना तुम्हारे साथ,तुम्हारे पास हर दफा हम होंगे। मगर एक रोज़ तुम्हारे कह देने भर से हम नहीं थमेंगे। तुम्हे मेरे पास आना होगा। देखना ये वक्त का न बहाना होगा। एक रोज जब हम तुम्हारे दरवाज़े पर ठहरेंगे। देखना गौर से कहीं वो मेरा जनाजा होगा। - राधा माही सिंह