यादे
यादों के पिटारों से कुछ यादे निकली हूँ। आज तक नई जैसी है। यह देख कर सोच रही हूँ। तो यह यादे कैसी है? यादों के पिटारों से कुछ यादे चुराई हूँ। यह जबकी वह अपना था तो यह चोरी कैसी है? हद की यह बिडम्बनाये थी। जबकी मतलब साफ था सभी बातों का। जहॉ हम थे और हमारी यादों के साये में लिपटी तनहाइयां थी। -राधा माही सिंह कभी तुम भी साफ कर लिया करो पिता की अलमारियों को देखना कितनी यादे निकलती है तुम्हारी। स्कूल के पहले दिन से लेकर आख़िरी टिका करण तक का यादे जहन में समेटे घूमता है। 18के हो जाने पर सीना तान कर चलता है। तुम्हारी हर खुशी को अपने माथे पर रखता है। पिता है साहब जो फ़क़ीर हो कर भी तुम्हे राजकुमारों,राकुमारी सा रखता है। -राधा माही सिंह मेरा प्रणाम मेरे पिताजी के साथ-साथ उन तमाम पिता को जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों को निभाया है। #राधा_माही_सिंह