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Showing posts from February, 2021

गाँव के सड़कें

मुझे मेरे गाँव की सड़के ना जाने क्यों? अच्छी लगती है। आढी-टेढी हो कर मेरे घर को निकलती है। मुझे मेरे गाँव की सड़कें ना जाने क्यों?  पसन्द पड़ती है? उन सड़को पर कभी-कभी घोड़ा गाड़ियाँ तथा बैलों की हुज़ूमे पार हो जाया करती है। बस मौत के देवता को छुड़ा कर।  कभी-कभी वहाँ होलियो में प्रेम की धारा बहा करती है। तो अक्सर दिवालियो में मेरे गाँव के सड़के जगमगा उठती है। ना जाने क्यों? मुझे मेरे गाँव की सड़कें जो आढी-टेढ़ी हो कर एक रेल्नुमा पटरियों सी लगती है। जिसके ठीक नीचे ही, सरसों की पीली-पीली बालियां सज-धज कर मेरे मन को लुभा रही होती है। हर मोड़ पर मेरे गाँव के रास्ते मुद जाती और मुझको मेरे अपनो से मिलते हुए मेरे घर को छोड़ जाती है। शायद इसलिए मुझे मेरे गाँव की सड़कें बहुत प्यारी लगती है।       -राधा माही सिंह

एक तरफा इश्क़

मानी मेंरी मोहब्बत एक तरफ़ा है। कम से कम मुकम्मल ना सही उसे मेरी अहसास करा देना। हुआ ना वो मेरा तो क्या? ऐ मेरे मोल्ह उसके दामन में खुशियों की सौगाते भर देना। महफूज़ रखना मेरी अश्क़ि को चाहे मुझे बर्बाद कर देंना। मेरी कलमो की बहती प्रेम है,वो मेरी कागज़ों की लिपटी साज़ है वो।  हो जाए चाहे कोई और जब उसकी पसन्द।  तो मुकम्मल उसका इश्क़ कर देना। मानी मेरी मुकम्मल अधूरी थी दास्ताने मोहब्बत की कहानी इस जन्म में। मेरे खुदा अगले जन्म उसे मेरा कर देना। हो इतनी तलब मुझे पाने की-की उसे इस कदर से प्यासा कर देना। मेरे मालिक मुक्कमल मेरी मोहब्बत ना सही उसे मेरे ना होने का जज़्बात समझा देना। जरा सा भोला है मेरा प्रेमी उसके हाथों को पकड़ कर उसकी जिंदगी रंगून कर देना। मेरे मोल्ह मैं मानी मेरी अधूरी है प्रेम कहानी। उसे हर बार ना सही कम से कम एक पल को मेरा कर देना।                    राधा माही सिंह