गाँव के सड़कें

मुझे मेरे गाँव की सड़के ना जाने क्यों?
अच्छी लगती है।
आढी-टेढी हो कर मेरे घर को निकलती है।
मुझे मेरे गाँव की सड़कें ना जाने क्यों?
 पसन्द पड़ती है?
उन सड़को पर कभी-कभी घोड़ा गाड़ियाँ तथा बैलों की हुज़ूमे पार हो जाया करती है।
बस मौत के देवता को छुड़ा कर।
 कभी-कभी वहाँ होलियो में प्रेम की धारा बहा करती है।
तो अक्सर दिवालियो में मेरे गाँव के सड़के जगमगा उठती है।
ना जाने क्यों?
मुझे मेरे गाँव की सड़कें जो आढी-टेढ़ी हो कर एक रेल्नुमा पटरियों सी लगती है।
जिसके ठीक नीचे ही, सरसों की पीली-पीली बालियां सज-धज कर मेरे मन को लुभा रही होती है।
हर मोड़ पर मेरे गाँव के रास्ते मुद जाती और मुझको मेरे अपनो से मिलते हुए मेरे घर को छोड़ जाती है।
शायद इसलिए मुझे मेरे गाँव की सड़कें बहुत प्यारी लगती है।
      -राधा माही सिंह

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