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Showing posts from April, 2025

आशा

तुम मुझे - मुझ जैसा ही चाहना। ये समुंदर, ये गहरी आंखों का तवजुब ना देना। सुनो, तुम मुझे - मुझ जैसा ही चाहना। मैं जैसी हूँ, जितनी हूँ, तुम्हारी ही हूँ। झील सी चंचल, मचलती हुई रागनी का कोई दावा ना देना। सुनो। तुम मुझे - मुझ जैसा ही चाहना। गर जो मैं हुई परिवर्तित। तो मैं मुझ से नहीं मिल पाऊंगी! मगर मिलना किसे है खुद से? मैं तुम में ही कही खो कर रह जाऊंगी। जब तने- बने से जी भर जाएगा,तो मुझे - मुझ में तुम्हारी तलाश रहेगी, इसलिए तुम मुझसे परिवर्तन का आश ना कर देना। सुनो ना। तुम मुझे - मुझ जैसी ही चाहना। - राधा माही सिंह 

तुम आना

ये पायल। ये झुमके। ये सब नहीं चाहिए मुझे। तुम जब भी आना तो एक आधा समय ले कर आना। जहां हम दोनों पूरी ज़िंदगी मिल कर गुजरेंगे। ये चॉकलेट। ये महंगे तोफे। इसके हम हकदार तो नहीं है। मगर तुम जब भी आना मेहरबान बन कर प्यार लूटना मुझ पर। हां माना मैं थोड़ी सी ज़िद्दी हूँ। मगर ये दिखाना। ये बात - बात पर जताना। नहीं चाहिए मुझको। तुम जब भी मेरे होना बेपाक इरादों से होना मुंतसर कुछ अधूरा सा ही होना मगर सच्चे इबादत से मेरा होना। मुझको नहीं चाहिए और कुछ भी। जब भी तुम आना मेरे लिए बस एक गुलाब और अपनी एक आधी जिंदगी ले कर आना जो मेरे संग बितानी हो। - राधा माही सिंह