आशा

तुम मुझे - मुझ जैसा ही चाहना।
ये समुंदर, ये गहरी आंखों का तवजुब ना देना।
सुनो, तुम मुझे - मुझ जैसा ही चाहना।
मैं जैसी हूँ, जितनी हूँ, तुम्हारी ही हूँ।
झील सी चंचल, मचलती हुई रागनी का कोई दावा ना देना।
सुनो।
तुम मुझे - मुझ जैसा ही चाहना।
गर जो मैं हुई परिवर्तित।
तो मैं मुझ से नहीं मिल पाऊंगी!
मगर मिलना किसे है खुद से?
मैं तुम में ही कही खो कर रह जाऊंगी।
जब तने- बने से जी भर जाएगा,तो मुझे - मुझ में तुम्हारी तलाश रहेगी, इसलिए तुम मुझसे परिवर्तन का आश ना कर देना।
सुनो ना।
तुम मुझे - मुझ जैसी ही चाहना।
- राधा माही सिंह 

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