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Showing posts from June, 2025

जाने किसने

जाने किसने इन मर्दों को प्रेम करने का अधिकार दिया! अगर स्त्रियां होतीं तो ग़ज़लें लिखी जातीं बर्बादियों की। जनाजे उठते हर घर से प्रेमियों के। अगर जब लिखती मोहब्बत एक स्त्री तो लिखती खुशियां अपने महबूब की। जाने किसने इन मर्दों को प्रेम करने का अधिकार दिया? अगर जो करतीं ये प्रेम स्त्रियां तो लिखतीं पायल की झंकार और सुनतीं गीत हज़ार। लिखतीं कागज़ पर अपनी भावनाएं, मिटती अपनी जवानी। अगर जो लिखती प्रेम स्त्री तो लिखती अपनी कहानी। जाने किसने इन मर्दों को प्रेम लिखने का अधिकार दिया! जो हर बार लिखते हैं और मिटा देते हैं। जो हर बार लिखते हैं और मिटा देते हैं। - राधा माही सिंह 

आजमाइश

यूं आजमाइश करो ना हमारी हर बात पर, हम पहले से ही आजमाए गए हैं। क्या-क्या बताएं और क्या-क्या छुपाएं तुमसे? जमाने भर की ठोकरें हम खाए हुए हैं। यूं छेड़ो ना कोई राग अब तुम, कि दामन में दाग लगाए हुए हैं। कि यूं चोला ना पहना करो मेरे महबूब का तुम, हम उनसे भी आजमाए गए हैं। बे शर्त जीने का ख़्वाब था आंखों में, और प्रेम का उल्लास लिए दफनाए गए है। यूं ना बर्बाद करो हमको, हम पहले से बरबादी के शहर में खो गए है।  यूं ना ज़लील कर तू मुझे जमाने में,हम पहले से ही खुदको - खुदके नज़रों से गिराए हुए है। तुम क्या जानो मेरी रातों का नींद और सुबह का चैन, हम तो सब कुछ एक शख्स के पूछे गवाए हुए है। - राधा माही सिंह

ऐ ज़िंदगी

ऐ ज़िंदगी, तू मुझे कहीं दूर ले चल, जहाँ बस मैं और तू ही रहें। ले चल मुझे उस फ़िज़ा में, जहाँ किसी की कोई तलब न रहे। गर मैं रहूँ ख़ामोश, तो तुम मेरे शब्दों को समझ जाना, मैं कहूँ बहुत कुछ, तो तुम मेरी गहराईयों को छू लेना। ऐ ज़िंदगी, अब हम तुम्हारे ही मोहताज़ हैं, सबने सहारे छिना हैं। हम तिनके-तिनके के लिए तड़पी हूँ। तू ले चल मुझे वहाँ, जहाँ तेरे आगोश में सर रखकर कुछ पल सुकून का सो सकूँ, और इस जहाँ को एतराज़ भी न हो। जहाँ मैं कह सकूँ, तू सुन सके, मैं रो सकूँ, तू हँसा सके, कोई बंदिश न हो, कोई हमें झुठला न सके। ऐ ज़िंदगी, तू मिलना किसी मुसाफ़िर की तरह, जो मैं कहूँ और तू न जा सके। मैं बाँधू तुझे अपने डोर से, तू सिसक सके, मैं बिलख सकूँ। मैं रूठ सकूँ, तू मना सके, बस यूँ ही चलता रहे ये सिलसिला। तू ले चल मुझे वहाँ, जहाँ कोई न जा सके। - राधा माही सिंह