आजमाइश

यूं आजमाइश करो ना हमारी हर बात पर,
हम पहले से ही आजमाए गए हैं।
क्या-क्या बताएं और क्या-क्या छुपाएं तुमसे?
जमाने भर की ठोकरें हम खाए हुए हैं।
यूं छेड़ो ना कोई राग अब तुम,
कि दामन में दाग लगाए हुए हैं।
कि यूं चोला ना पहना करो मेरे महबूब का तुम,
हम उनसे भी आजमाए गए हैं।
बे शर्त जीने का ख़्वाब था आंखों में, और प्रेम का उल्लास लिए दफनाए गए है।
यूं ना बर्बाद करो हमको,
हम पहले से बरबादी के शहर में खो गए है।
 यूं ना ज़लील कर तू मुझे जमाने में,हम पहले से ही खुदको - खुदके नज़रों से गिराए हुए है।
तुम क्या जानो मेरी रातों का नींद और सुबह का चैन, हम तो सब कुछ एक शख्स के पूछे गवाए हुए है।
- राधा माही सिंह

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