बहुत दिनो बाद एक खेल याद आई है। फिर से मेरी बचपन की सहेलिया याद आई हैं। चॉक्लेट देने वाले अंकल भी देखो पास बुलाए है। आज फिर से गुड़ा-गुड़िया का विवहा याद आई है। -राधा माही सिंह
तेरा मिलन और मेरा मिलन हुआ तेरी मुस्कुराहट देख मेरा फिसल जाना हुआ।ना जाने कितनी रात बीती और दिन हुआ मगर एक पल भी ना तुझ बिन गवारा हुआ।यही से शायद हमारी मुहब्बत का रुठ जाना ह...
गम था जाम लगा खुशी थी मुस्कान लगा ना जाने हर पल हर दफा इन होठो को किसी ना किसी का साथ मिला जब बिक रही थी मैं तभी ना जाने कितनों की दाम लगा मगर मेरे होठो को ना आवाज़ मिला -राधा माही स...