गम था जाम लगा खुशी थी मुस्कान लगा ना जाने हर पल हर दफा इन होठो को किसी ना किसी का साथ मिला जब बिक रही थी मैं तभी ना जाने कितनों की दाम लगा मगर मेरे होठो को ना आवाज़ मिला
-राधा माही सिंह
एक शाम कही तेरे दरवाज़े पर ठहर कर, अपना कारवा बंद कर देंगे। देखना एक रोज़ तुम्हे पा कर हर मुहिम तुमसे जोड़ देंगे। तुम्हे मालूम ही नहीं तुम मेरे लिए कितने जरूरी हो। तुम दिनकर किसी राजा जैसे मेरे हिरामणि हो। एक रोज़ जब ग़र गुजरूंगा तुम्हारे गलियों से, देखन फिर कभी उस गली का रुख ना करूंगा। तुम लाख जतन कर लेना मगर, मैं नहीं लौटूंगा। देखना तुम्हारे साथ,तुम्हारे पास हर दफा हम होंगे। मगर एक रोज़ तुम्हारे कह देने भर से हम नहीं थमेंगे। तुम्हे मेरे पास आना होगा। देखना ये वक्त का न बहाना होगा। एक रोज जब हम तुम्हारे दरवाज़े पर ठहरेंगे। देखना गौर से कहीं वो मेरा जनाजा होगा। - राधा माही सिंह
ये पायल। ये झुमके। ये सब नहीं चाहिए मुझे। तुम जब भी आना तो एक आधा समय ले कर आना। जहां हम दोनों पूरी ज़िंदगी मिल कर गुजरेंगे। ये चॉकलेट। ये महंगे तोफे। इसके हम हकदार तो नहीं है। मगर तुम जब भी आना मेहरबान बन कर प्यार लूटना मुझ पर। हां माना मैं थोड़ी सी ज़िद्दी हूँ। मगर ये दिखाना। ये बात - बात पर जताना। नहीं चाहिए मुझको। तुम जब भी मेरे होना बेपाक इरादों से होना मुंतसर कुछ अधूरा सा ही होना मगर सच्चे इबादत से मेरा होना। मुझको नहीं चाहिए और कुछ भी। जब भी तुम आना मेरे लिए बस एक गुलाब और अपनी एक आधी जिंदगी ले कर आना जो मेरे संग बितानी हो। - राधा माही सिंह
उनकी आँखों के त्वरूफ़ हम क्या करें? हम खुद ही उनकी आँखों में गोता खाए बैठे हैं। गर कोई पूछे हमसे मुसलसल माजरा क्या है? सच तो यह है कि हम जान बुझ कर घर का रस्ता भुलाए बैठे हैं। क्या कहूँ? क्या लिखूँ उनकी आँखों के बारे में? हम अपना ईमान बचाए बैठे हैं। क्या ग़ज़ल? क्या पहल? और क्या दोपहर! उनकी आँखों का नशा हम कुछ इस तरह से लगाए बैठे हैं। जाने क्या अच्छा क्या बुरा हम उनकी आँखों में हर बार डूब जाने को तैयार बैठे हैं। - राधा माही सिंह
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