गम था जाम लगा खुशी थी मुस्कान लगा ना जाने हर पल हर दफा इन होठो को किसी ना किसी का साथ मिला जब बिक रही थी मैं तभी ना जाने कितनों की दाम लगा मगर मेरे होठो को ना आवाज़ मिला
-राधा माही सिंह
नौकरी कब मिलेगी सब ने पूछा। मगर किसी ने नहीं पूछा कैसे मिलेगी? सब ने पूछा कब तक हो जायेगा "एग्जाम क्लियर" मगर किसी ने ये नही पूछा की तैयारी कैसी चल रही है? सबने पूछा किताबे तो पढ़ रहे हो ना? मगर किसी ने ये नही पूछा कैसे किताबे पढ़ रहे हो। तो किसने सफल व्यक्तियों का उदहारण दे कर कहा उस जैसा करो। मगर किसी ने ये नही पूछा तुम कैसा करना चाहते हो? सब अपने ही है ! जो अपने सवालों को लिए बैठे है। तुम जब भी किसी से मिलना तो पूछना निंदे तो अच्छी आती है ना ? इस बार परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है? संभवता थोड़ी कठिन ही होगी ! क्या हुआ इस बार नही हुआ तो ? अभी तो उम्र बाकी है ना। ये ना सही वो कर लेना, वो भी ना सही तुम आज़ाद ही रह लेना। क्या हुआ जो ना मिला। समझ लेना वह तुम्हारे हिस्से का था ही नही। मगर.....!!! लिखना खुद की कहानी, हो वो कहानी पुरानी ही सही। कोई क्या पूछेगा? क्या कहेगा? तुम यह मत सोचना। पिता जी ने सारे पैसे झोंक दिए इसकी फिकर तुम मत करना। तुम जो करना चाहते हो तुम वही करना। तुम जैसे चाहते हो! जितना चाहते हो उतना ही करना। कम जायदा इसका उसका इस लिए उस के लिए का फिकर तुम मत करन...
एक शाम कही तेरे दरवाज़े पर ठहर कर, अपना कारवा बंद कर देंगे। देखना एक रोज़ तुम्हे पा कर हर मुहिम तुमसे जोड़ देंगे। तुम्हे मालूम ही नहीं तुम मेरे लिए कितने जरूरी हो। तुम दिनकर किसी राजा जैसे मेरे हिरामणि हो। एक रोज़ जब ग़र गुजरूंगा तुम्हारे गलियों से, देखन फिर कभी उस गली का रुख ना करूंगा। तुम लाख जतन कर लेना मगर, मैं नहीं लौटूंगा। देखना तुम्हारे साथ,तुम्हारे पास हर दफा हम होंगे। मगर एक रोज़ तुम्हारे कह देने भर से हम नहीं थमेंगे। तुम्हे मेरे पास आना होगा। देखना ये वक्त का न बहाना होगा। एक रोज जब हम तुम्हारे दरवाज़े पर ठहरेंगे। देखना गौर से कहीं वो मेरा जनाजा होगा। - राधा माही सिंह
अब गर तुम प्रेम करना तो उससे करना। जो तुम्हे तुम जैसा चाहे। अब गर तुम प्रेम करना तो उससे करना। जो तुम्हे तुम जैसा सराहे । अब गर तुम प्रेम करना तो उस से करना । जो तुमको तुमसे ज्यादा चाहे। तुम्हारी पसंद ना पसंद को स्वीकारे। अब जो तुम प्रेम करना तो बेहद करना। मगर उससे करना जो तुम्हे टूट कर चाहे। - राधा माही सिंह
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