पिता और उनकी कंधों की याराना
जिन कन्धों पर बैठ कर दुनिया देखी है हमने। हाँ अपने पिता की काली रातो को उस वख्त नही देख सका क्योंकि मसहूर था मैं मेरी सवारी में। अब दर्द का अहसास हुआ है तो समझ आया है की क्या फर्क था पिता जी की कन्धों कि यारी में। आज तजुर्बा मिला है, बोझ का जब एक कदम चला तो याद आया ऊन कंधों कि बोझ क्या होगी? दुशरा चलता कि थक सा गया और समझ आया की भार क्या होगी उन कन्धों की सवारी का? और वो अक्सर ही मेरे माथे को चूम लिया करते थे आपने माथे का दर्द हल्का करने के लिए। बोझ तले दुबकते थे वो आँसुओ को हास् कर चूमते थे जब मेरे आँखों से एक कतरा गिर आया जमी पे तो समझ आया कि आग क्या है? तप्ता था चील-चिलते धूप में उनका बदन नंगा मेरे जिस्मो को वस्त्र दिया। जब कफ़न की बारी आई तो समझ आया कि आख़िर मुझको क्यों मेरे पिता ने मुझको जन्म दिया? इन कन्धों पर बैठ कर पूरा जहाँ देखा है हमने जब खुद पर सहा तो समझ आया कि औलाद क्या है? और कंधों का प्यार क्या है? - राधा माही सिंह