मोहब्बत मुकम्मल होते।

हमने देखा है, मोहब्बत को मुकम्मल होते।
हमने देखा है, दो जिस्म-एक जान होते।
हमने देखा है, मैं को हम होते।
हमने देखा है, विस्तर पर पड़ी सलवटों को गुन-गुनते।
हमने देखा है,किसी दिवाने को सुबह की चाय शाम को पिते।
हमने देखा है,तमाम दूरियों के बावजूद भी नज़दीकियों को बढ़ते।
हमने देखा है, मोहब्बत को मुकम्मल होते।
                  -राधा माही सिंह

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