तू बस सवाल है मेरा?

तू बस एक सवाल है मेरा 
जो मुझ तक उलझ कर रह जाता है।
तू बस एक ख्वाब है मेरा।
जो हर सुबह को मुझे तन्हाइयो में छोड़ जाता है।
मैं वो राज हूँ तेरी 
जो हर पल तू मुझ से पीछा छुड़ाना चाहता है।
अब भला तुम से दूर जाऊँ तो कैसे जाऊ?
अब तो तू हर चहरे में भी नज़र आता है।
फ़क़त नूर नही हूँ मैं।

शायद इसलिए भी दूर हूँ।
मुझे समझाने नही आता है और यह भी सच है की गर तुम जो रूठो तो मुझे मनाने भी नही आता है।
और कितनी मोहब्बत है तुम से जताने भी नही आता है।
गर तुम जो रूठो तो मनाने भी नही आता है।

मैं वो नींद हूँ।
जो अक्सर रोज़ रातो को तेरी तकियों के नीचे सो जाती हूँ।
क्या बिगड़ेगा मेरा?
जो तू मुझ से दूर जाता है।
तू बस एक सुकून है मेरा
जो तुझे अक्सर औरो के साथ पाती हूँ।
खामोश रह जाती हूँ।
क्योंकि भरी महफ़िलो में बदनाम नही करना चाहती हूँ।
ख़ैर कदर करे भी तो कैसे करे तू मेरा
मैं जो बिना मांगे तुझे मिल जाती हूँ।
ख़माखा मगरूरी थी मेरी 
 जो मैं टूटे हुए काच सी अब नज़र आती हूँ।
अब प्यार कर तो क्या और कैसे करूँ?
अब मैं हर किसी की कहानी का हिस्सा नही बनना चाहती हूँ। 
      -राधा माही सिंह

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