कुछ यादों के पल

कुछ हसीन लम्हो से उनकी यादो को चुराया हूँ।
वो तो ना मिल सके मगर उनकी अदाओ से कुछ अदाएं को चुराया हूँ।
खुदा ही जानता होगा की कितने चक्र काटे थे हमने उनकी गलियों का मगर ना जाने कौन किस्मत वाला उन्हें एक अग्नि के सात चक्र काट कर ले गया?
अब तक मैं इस हैरत में हूँ।
बेगैरत लम्हो से बेबुनियादी रिश्तों के यादों में सिमट कर हर दिन अपने चादर को भिगोया हूँ।
 उस तकिए से पूछो की मैं उन काली रातो को कितना रोया हूँ?
अब कोई सिकस्त दु तो इस दिल को कैसे दु?
उस बेवफा ने तो मुँह माँगा ईनाम जो दिया है।
 जिसका मैं हक़दार ना था उन्होंने  वो नाम भी दिया है।
कुछ फुर्सत के पलों से मैंने ही उसे चुना था।
जिसका शिला इतना बुरा मिला हैं।
यह सिलसिला कुछ क़दम और भी बढ़ता की मैं इसे अपने जिंदगी से रुक्सत किया हूँ।
सच पूछो तो बुजदिल सा जी कर आज समझा कि कितना बड़ा गुन्हा किया हूँ।
कुछ हसीन लम्हो में जी कर खुद से रूबरू किया हूँ।
वो तो ना मिल सके मगर उनकी यादों का एक महल अपने दिल मे खड़ा किया हूँ।

          -राधा माही सिंह

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