डर लगता है।
माँ अब डर लगता है मुझको बेटी होने पर।
दाग ना लग जाये मेरी योबन पर।
माँ अब डर लगता है मुझको बेटी होने पर।
जवानी की कहानी मत याद दिलाना अब तू सिमट सी गई है मेरी बचपन एक बिस्तर पर।
माँ अब डर लगता है मुझको मेरी बेटी होने पर।
गुरु को गुरु की मगरूरी नही अब रिश्तों में मिलावट सा होने लगा है।
दुसरो की बहन,बेटी कौड़ी के भाव बिकने लगा है जिंदा जनाजा निकलने लगा है द्वारों पर।
माँ अब डर सा लगता है मुझको मेरी लड़की होने पर।
संसार का रीत समझ मे नही आता प्रेम का प्रीत कोई को नही भाता अब तो यकीन ना रहा मुझको मेरी दोस्ती पर।
माँ अब डर सा लगता है मुझको मेरी बेटी होने पर।
माँ मुझको दफ़ना देना हो सके तो खोख में ही मौत का घाट उतार सेना अब मुझको कोई ऐतराज नही भून हत्या पर।
माँ अब डर लगता है मुझको मेरी बेटी होने पर।
माँ मुझको डर लगता है मुझको बेटी होने पर।
सुनो ना माँ मुझको तुम कही छुपा लेना गोद को फाँसी का फंदा बना देना अब इन्तेजार नही मुझको खुदा की मौत मरने पर।
माँ डर लगता है मुझको मेरी बेटी होने पर।
-राधा माही सिंह
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