औरत का अस्त्तित्व

औरत का दूसरा नाम त्याग होता है माँ तुम ही तो बतलाई थी।
औरत का जेवर संस्कार होता है माँ तुम ही तो सिखलाई थी।
इन हाथो में मेहंदी की बूटी सबसे पहले तुम ही तो लगाई थी।
किसी दिन छोड़ पीहर का आंगन  साजन के द्वार सजाना है,इस रचना का मुख्य धारा माँ तुम ही तो निभाई थी।
जब छोड़ बचपन किसी और आँगन,सपना कई सजाए थी।
औरत का अभिमान होता है दर्दो का चादर यह भी तुम ही पढ़ाई थी।
मगरूरी में रहना माँ तुम्ही सिखलाई थी।
औरत का सर का ताज होता हैं अभिमान, स्वामित्व की परिभाषा।
औरत दूँगा तो कभी काली होती है माँ तुम ही तो पहचान कराई थी।
सही ग़लत का पाठ तुम ही तो पढ़ाई थी।
           - राधा माही सिंह 

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