आख़िरी मुलाकात

आख़िरी मुलाक़ात।

ता उम्र साथ रहो हमने कहाँ इतना मांगा है?
बस एक आख़िरी मुलाकात ही सही मुकम्मल कर दो ना।
क्यों तू आज खुदा बन बैठा है?
ता उम्र साथ चलने को नही कहा है हमने,बस कुछ कदम की दूरी है मेरे घर की राहे कम से कम वहाँ तक कि इफाज़त कर दो ना।
एक आख़िरी मुलाकात मुकम्मल कर दो ना।
बस इतनी सी फ़रियाद है।
मुकम्मल हो हमारी आख़िरी मुलाकात बस यही अब तुमसे "आख़िर"में आश है।
 ज्यादा तो नही माँगा है हमने तुमसे!
बस कुछ लम्हो की तो बात है।
तुम उस लम्हो को कुछ पल के लिए मेरे झोली में भर दो ना।
मैने कई बार सुना है,तुम्हारी दरिया दिली।
सुनो कुछ कदम ही सही मेरे साथ भी चल दो ना।
 -राधा माही सिंह

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