ना जाने क्यों?
ना जाने क्यों?
ना जाने क्यों आज कल रूठा-रूठा सा है मेरा खुदा?
ना जाने क्यों आज कल टूटा-टूटा सा है मेरा खुदा?
हालांकि शिल्पकार ने कहाँ था मुझसे बातों-बातों में की बड़े ही नाज़ों से बनाया है उसने "खुदाई मैं सम्भल कर करू" ऐसा जताया था उसने।
हाथ छुटे बिना ही टूट गया,बिना अवज़ दिए ही रूठ गया।
इल्म भी ना है मुझे की कैसे मनाऊ मैं उसे।
वो कुछ कहे बिना ही बहुत कुछ आख़िरी बाते कह गया।
वो मेरा नही हो सकता शायद-शायद यही कहना था उसे मगर जल्दी में था इसलिए कहाँ "किसी और ने इबादत किया है मेरा" और चला गया।
ना जाने मेरा खुदा क्यों मुझसे रूठ गया?
-राधा माही सिंह
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