कभी हुआ करती थी

समझ लेना मैं कभी बीते सालों की एक आख़िरी माह हुआ करती थी।
समझ लेना मैं कभी  समन्दर की प्यासी लहरें हुआ करती थी।
समझ लेना मैं कभी गुजरे हुए इश्तिहार में कोई उफ़नती हुई स्नाटेदार  ख़बर हुआ करती थी।
समझ लेना मैं कभी ना मनाई जाने वाली त्योहार हुआ करती थी।
समझ लेना मैं कोई नई गली में पुरानी मकान हुआ करती थी।
समझ लेना मैं कभी तनख्वाह की आधी हिसाब हुआ करती थी।
समझ लेना कभी हुआ करती थी।
                -राधा माही सिंह

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