कहानी




मैं मेरे कहानी में बना हूँ कोल्हू का बैल कि खुदा जाने कब तक चलूँगा।

कि मंजिल के तलब में निकल पड़े है कोसो दूर की अब खुदा ही जाने की मंजिल कब मिलेगा?

कि अपने किरदारो को खुद लिख रहा हूँ मैं।
आज-कल अपने दर्दो को खुद ही सील रहा हूँ मैं।
अब खुदा जाने की इस शरीर को जख्मों से रुखसत कब मिलेगा?

यू तो मिलता हूँ अक्सर मुस्कुराते हुए  लोगो से, तो उन्हें लगता है कि "क्या ज़िन्दगी" जी रहा हूँ मैं!
कि अब उन्हें कौन भला समझाए?
की मुश्किल होता है जीते जी खुदको मार देना,मगर अब माहिर हो गया हूँ मैं।
कि हर रोज खुद का ही क़ातिल हो गया हूँ मैं।

कि आईने को देखे बिना भी सवरने लगा हूँ मैं।
समय के पीछे भाग रहा हूँ लगता है समझदार हो गया हूँ मैं।

अब दीपावली नही रुलाती है मुझको,शायद मर्द हो गया हूँ मै।
कि अब होली पर ना भी जाऊ घर तो होली ठीक-ठाक ही गुज़र जाती है,शायद ज़िम्मेदार हो गया हूँ मैं।

ना जाने किस मदहोश शायर ने कहा था?
कि जब बाप की चपल बेटे को होने लग जाये तो दोस्त बन जाते है,शायद मैं ग़लत हूँ मगर यह पंक्तियाँ ग़लत है यह दावे के साथ कह सकता हूँ मैं।

"कि मैं जब पहली बार पहना था अपने पिता की चपल को तो ज़िमेदारियो ने कंधा जोड़ लिया था।
 आज भी उन बोझ तले कही घुट रहा हूँ मैं।

मेरी कहानियाँ बेशक किसी दिन भुलाई जा सकती है मगर किरादरे दर-बदर की दस्तूर नही बदल सकती यह यह डंके की चोट पे कह रहा हूँ मैं।

कि चलो अब आओ कहानी के आख़िरी सफर में ले चलता हूँ मै।
कि जहाँ मेरी आख़िरी सासे मुझे अपने आगोश में ले रही होगी तब भी घर की फिक्र में जल रहा होऊँगा मैं।

"कि आख़िर में लिखा हूँ अपनी कहानी के कुछ पंक्तियों को मैं।"

जब सिमट रहा होऊँगा मैं मुझ में तब ज़िमेदारियो का बदल हटा देना।
कि सो सकू-सुकु से मेरे मोल्ह मेरे माँ के लफ़्ज़ों से "मेरा राजा बेटा" मिटा देना।
कि रहूँ सदा राम सा अमर की मेरे रिश्तों में थोड़ी सी पनहा लेना।
कि मेरे पिता की तनी मूछो की ताव युही बरकरार रखना।
मेरी बहन का सुखी संसार रखना।
कि भला क्या लिखूं  मैं प्रियतमा तुम्हारे लिए की तुम में मैं ज़िन्दा रहूँगा।
आना तुम हर रोज मुझ से मिलने जहाँ हम पहली बार मिले थे मैं तुम्हे वही मिलता रहूँगा।
कि मैं मेरा अक्ष छोड़ जा रहा हूँ ।
यू तो विरासत ने दिया कुछ नही था।
 आज मैं मेरी यादे दिया जा रहा हूँ।
की मैं मेरी कहानी के पन्नों में समिटने जा रहा हूँ।
सिलसिला शायद अब शुरू हुआ है मैं आख़िरी नही था।

कि कहानी युही चलता रहेगा फिर कोई मैं बनता रहेगा।
सालों साल युही चलता रहेगा फिर कोई मैं हर रोज खुद में मरता रहेगा।
                 -राधा माही सिंह

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