बेटी होना अब ऐब सा लगता है।

कि अब बेटी होना मुझको ऐब सा लगने लगा है।
चाँद पर लगने वाली ग्रहण अब ज़िंदगी में लगने सा लगा है।
कभी टूटी नही थी इस क़दर।
कि अब हर वक़्त,हर लम्हा,हर पल मुझको तोड़ने सा लगा है।
और लोग बात करते है,की सपनो का महल खड़ा करू।
कि अब उन्हें कौन बताए की अब बजार में "लड़की"होने का "स्टंप" भी मिलने लगा है।
कि हम ले तो ले "सास" मगर अब इन "सासों" का किराया भी लगने लगा है।
कि अब घुटन सा होता है मुझे मेरे ही शरीर में होकर।
कि अब बेटी होना पाप सा लगने लगा है।
"फटी जीन्स और कटी किस्मत" नसीब से मिलता है,अब हक़ीक़त सा लगने लगा है।
कि मिडिल क्लास की छोरी होना जंजाल सा लगने लगा है।
कि सूर्य ग्रहण अब हर रोज ही घर पर लगने लगा।
कि बेटी होना अब ऐब सा लगने लगा है।
दहेज़ का मार अब चोट नही देता,प्यार में ठुकराया हुआ शरीर बोझ नही लगता।
 कि बस "नाम"जब भी आता है।
मगर पहचान पहले मेरी लड़की से ही होता है।
तब ग्रहण का कलंक मेरे माथे पर आप रूपी मढ जाता है।
तब कुछ और नही लगता है।
बस अब बेटी होना ऐब सा लगता है।
कि मानो बेटी होना जैसे ज़िन्दगी का सौदा सा लगता है।
कि बेटी होना अब एब सा लगता है।

              -राधा माही सिंह

Comments

  1. U have mention your point it is truth but now a days females beome more powerful than male... So Proud💪💪 your self and I think you are a very good writer..

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