माँ को पत्र बेटी के नाम
ये जो अदाएं लाती हो,मुस्कुराने का ज़रा बताओ ना कैसे अपने ग़मो को छुपाती हो?
ख़ैर यहाँ तो सब ठीक ही है तुम बताओ कैसे अपने कमरे को सजाती हो?
मेरा तुम बिन बिखरा पड़ा है संसार कैसे तुम हर हालत में गुणी साबित हो जाती हो?
बस यही पूछना था तुमसे कि कैसे?
कमरे को सजाती हो?
मैं उलझ गई हूँ,सात धागों का फेर मिलाते-मिलाते।
तुम कैसे रूठे पीहर को भी मानती हो?
अच्छा सुनो ना माँ....
वो आ जाये इस से पहले ख़त को यही दबाती हूँ।
बेटी का प्रेम समझ लेना।
पीहर का लाज़ बचाती हूँ।
ख़ैर मेरी छोड़ो अपनी बताओ माँ तुम कैसे दो-दो आँगन को महकाती हो?
- राधा माही सिंह
👌👌👌
ReplyDeleteKya baat hai
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