बचपन वाला त्यौहार नहीं आता।
वो बचपन वाला त्यौहार नहीं आता।
शनिवार तो आता है, मगर अब इतवार नही आता।
अब वो बचपन वाली मेला का व्यापार नही आता। हर बार तारीख़ तो आता है,मगर अब वो गर्मी और ठंडी की छुट्टी वाला माह नही आता।
जिन्दगी अब तनख्वा के पीछे तो भाग रही है।
मगर अब वो पिताजी से मिलने वाली एक रुपए का शान नही आता।
शनिवार तो आता है मगर अब इतवार नही आता।
"नानी मां"का कॉल आया था कल रात, मुझसे पूछ रही थी आने को!
मैंने बोला तो है, जाने को।
मगर अब कैसे कहूं उनको ?
कि अब वो इंतजार ना किया करे हमारा।
क्योंकि बिता हुआ साल वापस नही आता।
अब हर बार रविवार नही आता।
गर्मी, जाड़े की छुट्टी वाली माह नही आता।
अब वो सुकून वाली शाम नही आती।
शनिवार तो आता है,मगर अब इतवार नही आता।
अब बचपन वाला अब त्यौहार नहीं आता।
- राधा माही सिंह
Very nice nd really purani yaadein taja ho gai...
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