चाय के बाद।

मेरी इत्र की महक भी तुम हो।
मेरे ग़ज़ल की "ल्फज़" भी तुम हो।
मेरी शायरी की डायरी भी तुम हो।
मेरे नजर के "नज़राना" भी तुम हो।
मेरी हर एक राज का "अल्फाज़" भी तुम हो।
मेरे गुरुर का अंदाज भी तुम हो।
मेरी प्रारंभ भी तुम हो।
मेरे अंत भी तुम हो।
मेरे उत्सवों के रंग भी तुम हो।
मेरे आंगन में बने रंगोली भी तुम हो।
तेरे होने से जग है।
तेरे होने से हम है।
मेरी सासो में तुम हो।
मेरे पलकों पे तुम हो।
मेरी गीतो के आसार भी तुम हो।
या - यूं कहूं कि एक चाय के बाद जिसे मैंने आखिरी पसंद बनाया वो तुम हो।
अब और क्या कहूं की तुम क्या हो?
           _ राधा माही सिंह

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