अब बस डर लगता है।
अब इंसानों से इस कदर से डरने लगे है हम।
कि हर चहरे में कोई साज़िश लगता है।
तमाशा मैं क्या देखू?
मेरी जिन्दगी का हर घड़ी अब तमाशा लगता है।
मुकद्दर बदलने चले थे हम अपना।
मगर इंसानों ने सोच बदल डाला है।
मेरे ही घर में रह कर।
मेरे ही घर को जला डाला है।
गलतियां तो हमारी है।
कि हम ही भरोसा कर लेते है हर बात पर।
यह भूल कर की वो इंसान है।
- राधा माही सिंह
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