कैसे?
मैं उन्हें समझाऊं तो समझाऊं कैसे?
उनके आंखो में तो देखा भी नहीं जाता और नज़रे चुराया भी नही जा सकता।
इस राज को खुद में दफनाऊ तो दफनाउ कैसे?
अगर चुरा भी लूं निगाहें उनसे तो उन्हे समझाऊं कैसे?
गर वो रूठ जाए तो मनाऊं कैसे?
कि मैं उन्हे समझाऊं तो समझाऊं कैसे?
अब तो जाया भी नही जाता उस गली में।
मगर बिना जाए रहा भी नही जा सकता।
कि हाले दिल बताऊं तो बताऊं कैसे?
लगा है चोट इस दिल पर की जख्मों को छुपाऊ कैसे?
कि मैं उन्हे समझाऊं तो समझाऊं कैसे?
उलझनों में पड़ी ये राते बिताऊ तो बिताऊं कैसे?
गर वो रूठ जाए तो मनाऊं कैसे?
- राधा माही सिंह
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