घर वालो की याद

आज घर वालो की बहुत याद आ रही है यार।
लग रहा,जैसे कई अरसो से मिली ही नही।
मगर पिछले  दिवाली ही तो हम मिले थे ना।
मां की हाथो की नरम,मुलायम रोटियां और कुछ मीठी गालियां भी तो खाई थी ना।
घर से निकलते वक्त पिता जी ने कुछ रुपया भी हाथो में थमाया था ।
ज्यादा खर्च ना करू यह भी समझाया था।
बड़ी बहन ने बखूबी प्यार लुटाया था।
कोई परेशानी हो अगर उसे पहले याद करू यह कह कर कई कसमें भी खिलाया था।
भाई तो बस स्टैंड तक छोड़ने भी आया था।
फिर ये हलचल क्यों है?
घर जाने की फिर ज़िद क्यों है?
घर से निकली हूं घर को बनाने ही।
ना जाने "बन पाएगा या नही?"
जाने ये उलझन क्यों है?
आज ये आंखे मेरी नम क्यों है?
ये दिल में इतना हलचल क्यों है?
घर जाने की फिर ज़िद क्यों है?
               -राधा माही सिंह

Comments

  1. अच्छा लिखा है माही तुमने।
    सतत् प्रयत्नशील रहो।

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