कौन जानता है!
सब मुंह पर राम बोल जाते है।
पीठ पीछे खंजर भोक जाते है।
जाने किसके अंदर क्या छिपा है?
सब सामान्य है, सामान्य है।
कह - कह कर, हमारा हर रोज हक लूट जाते है।
दरअसल इसकी आदत तो हम घर से ही दिलाई जाती है।
अब चाहे घर के सभी फैसले चाहे हम कर ले, मगर लड़का/लड़की अक्सर पिता जी का पसंद का ही होता है।
अब होना भी लाजमी है,क्योंकि उनके पिता जी ने भी तो यही किया है।
सब अपने है।
बस ये दिखाते है।
जी सही ही तो बोला मैंने।
कि सब दिखाते ही तो है।
वरना कौन जानता है?
किसका जान कौन मांगता है?
अब कल कि ही तो बात है।
अनजाने थे हम कुछ साल पहले।
अब कई अरसो से हम एक दूसरे की जान है।
मगर जिसने जन्म दिया वो आज मेरे हालातों से अनजान है।
कौन जानता है?
किसके मुंह में राम है?
और किसके मुंह पे राम है?
या जाने किसने कितना गमों के समंदर में खुदको नहल्या है।
या आज भी पाप को गंगा में धो कर आया है?
कौन जानता है।
किसके अंदर क्या है?
- राधा माही सिंह
👌
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDelete👍🏻
ReplyDeleteNice 😄
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