उनकी आँखें
उनकी आँखों के त्वरूफ़ हम क्या करें?
हम खुद ही उनकी आँखों में गोता खाए बैठे हैं।
गर कोई पूछे हमसे मुसलसल माजरा क्या है?
सच तो यह है कि हम जान बुझ कर घर का रस्ता भुलाए बैठे हैं।
क्या कहूँ? क्या लिखूँ उनकी आँखों के बारे में?
हम अपना ईमान बचाए बैठे हैं।
क्या ग़ज़ल? क्या पहल? और क्या दोपहर!
उनकी आँखों का नशा हम कुछ इस तरह से लगाए बैठे हैं।
जाने क्या अच्छा क्या बुरा हम उनकी आँखों में हर बार डूब जाने को तैयार बैठे हैं।
- राधा माही सिंह
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